जाति पंथ से ऊपर उठकर स्वपर कल्याण का परम पावन पथ प्रभु नेह हमें दिखाया है : राजेन्द्र जैन
जाति पंथ से ऊपर उठकर स्वपर कल्याण का परम पावन पथ प्रभु नेह हमें दिखाया है : राजेन्द्र जैन

 

 

अहिंसा के अवतार भगवान महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के पावन अवशर पर अपने शब्दो मे बात रख रहा हुँ निवेदन है कि गल्तियों को सुधी जन सुधार कर पढेंगे। अहिंसा सत्य अस्तेय अपरिग्रह और ब्रम्हचर्य इन पाँच वृतो को विश्व के सभी महा मनीषियो ने अपने अपने मतानुशार अपनाया है भ.महावीर ने इनको महावृतो के रूप मे सूक्ष्मता से पालन पर जोर दिया ताकि संसार के समस्त जीव निर्भय होकर जीवन जीकर अपना कल्याण कर सकें इन वृतो का पालन संभव कैसे हो इसके लिए हमे आध्यात्मिक पक्ष समझना आवश्यक है उन्होने कहा क्रोध मान माया लोभ ये कषाये जैसै जैसे मंद पड़ती जायेगी वैसे वैसे आचरण की

 

 

 

 

 

 

 

विशुध्दि बडते जायेगी यही वैज्ञानिक पक्ष जैन दर्शन का प्राण है उन्होने कहा अपनी कषायो को त्याग कर विशुध्द आचरणशील बनकर आत्मस्त हो जा तुझे तमाम दुखो से स्वमेव मुक्ति मिल जायेगी यही कारण है कि जैन दर्शन मे गुणों की पूजा उपासना पर ही बल दिया गया है अतः यह युक्ति यहाँ पूर्णतया सार्थक है कि व्यक्ति जन्म से नही वल्कि कर्म से महान बनता है

सर्वोच्य णमोकार महामंत्र इसका उदाहरण है जिसमे व्यक्ति को नही वरन गुणों को नमस्कार किया गया है साथ ही महा पर्व पर्युषण मे भी 

 

 

 

 

 


 

 

 

उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम,तप,त्याग,आकिंचनऔर ब्रम्हचर्य इनको ही धर्म मानकर इनकी ही पूजा उपासना कर व्रत नियम उपवास पूर्वक कषायों को जीतने का उद्यम किया जाता है कहने का तात्पर्य है कि जाति पंथ से ऊपर उठकर स्वपर कल्याण का परम पावन पथ प्रभु नेह हमें दिखाया है इस परम पावन अवसर पर विश्व की ज्वलंत समास्याओ का हल इन्ही सिद्धांतो को मन वचन काय से अपनाकर ही किया जा सकता है

 

 

 

राजेन्द्र जैन'अनेकांत' 

बालाघाट (म.प्र)